🔶 प्रस्तावना
सनातन धर्म में एकादशी व्रत को विशेष पुण्यदायक माना गया है। वर्षभर में 24 से 26 एकादशियाँ आती हैं, जिनमें वरुथिनी एकादशी का अत्यंत आध्यात्मिक और दानशील स्वरूप वर्णित है। ‘वरुथिनी’ का अर्थ है ‘रक्षा प्रदान करने वाली’। यह एकादशी प्राणी मात्र को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आत्म-कल्याण की दिशा में अग्रसर करती है।
📜 व्रत कथा (पौराणिक दृष्टांत)
पद्म पुराण एवं भविष्य पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, नर्मदा नदी के किनारे महामति मंदाता नामक एक धर्मनिष्ठ राजा राज्य करते थे। एक बार जब वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी एक जंगली भालू ने उनके पैर को पकड़ लिया और घसीटने लगा। राजा ने अत्यंत धैर्य और भक्ति से भगवान विष्णु का स्मरण किया। तभी आकाशवाणी हुई कि यदि तुम वरुथिनी एकादशी का व्रत करते, तो यह विपत्ति न आती। कालांतर में, उस व्रत को संपन्न करने के पश्चात राजा मुक्त होकर दिव्य स्वरूप में विष्णुलोक को प्राप्त हुए।
📅 पंचांग विवरण
✅ एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 अप्रैल 2025 को संध्या 4:43 बजे
✅ तिथि समाप्ति: 24 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:32 बजे
✅ व्रत तिथि: 24 अप्रैल 2025 (उदया तिथि अनुसार)
✅ पारण मुहूर्त: 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार – प्रातः 5:46 बजे से 8:23 बजे तक
🕉️ व्रत का आध्यात्मिक महत्त्व
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। यह व्रत ब्रह्महत्या, सुरापान, परस्त्रीगमन, झूठ, चुगली, चोरी जैसे महापापों से भी प्रायश्चित्त देने में समर्थ है। तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में कहा है:
“हरि बिसरि करि काम सनेहू। करत माया उपजइ गेहू।।”
यह व्रत जीवात्मा को मोहजाल से निकालकर भक्ति के मार्ग में स्थिर करता है।
🪔 व्रत पूजन विधि (विस्तारित चरण)
🌄 पूर्वसंध्या तैयारी:
व्रत के एक दिन पूर्व सात्विक भोजन लें। रात्रि को ध्यान, मंत्रजप, और विष्णु नाम स्मरण करें।
🌅 प्रातः पूजन विधि:
ब्रह्ममुहूर्त में उठें, स्नान करें। शुद्ध पीले वस्त्र धारण करें।
मंदिर को गंगाजल से शुद्ध करें।
भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण एवं लड्डू गोपाल का पंचामृत से अभिषेक करें।
उन्हें पीले फूल, अक्षत, पीला चंदन, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
दीपक, अगरबत्ती, घंटा व conch द्वारा पूजन करें।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
विष्णु सहस्रनाम पाठ करें।
खीर, दही, फल, शक्करपारे, सूखे मेवे का भोग लगाएं।
आरती करें: “जय जय प्रभु दिनदयाला”, “श्री हरि स्तुति” आदि।